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जब सपने में दिल्ली आयी

एक ही दिन में मैं दो बार ट्रेन का सफर कर रही थी वो भी दिल्ली का। पूरा रिजर्वेशन था साहब, आधा भी नही। ऑनलाइन पेमेंट किया था वो भी एक्स्ट्रा।  सोचा था रात का सफर होगा कम्बल अलग से रख लूँ। लेकिन यह क्या ये तो मैं  2,-3 घंटे में धूप-धूप में ही पहुंच गई थी। अरे ये उज्जैन आया था के दिल्ली?? पैसा waste... जाने कैसा तो होस्टल । होस्टल क्या था पूरी कॉलोनी ही बसी हुई थी ये तो। मैं अपना ट्रॉली बैग लिए घूम रही थी। के अचानक.. ये आकांक्षा यहां क्या कर रही यहां ? एक लंबे से गलियारे में  वो टीशर्ट लोअर जैसा कुछ पहन के आराम फरमा रही है।  कई सारे लड़के लड़कियाँ गुज़र रहे थे वहाँ से।  आकांक्षा मुझे नहाना है पानी कहाँ  से मिलेगा ? उसने एक ओर इशारा किया और फिर लेट गयी। मैंने पास ही पड़ी बकेट उठायी और चल दी। कई सारी दुकाने थी आसपास। वहीं पास एक टंकी से लोग पानी भर रहे थे। मेरे जाते ही एक लड़के ने कहा अब से यहां पानी नहीं मिलेगा तुम्हें दूसरी साइड जाना होगा। मैंनें कहा- ठीक है आज तो मिल सकता है please? हाँ आज ले सकती हो। मैंनें पानी लिया और चल दी। पर मैं अपने कमरे का रास्ता भूल गयी थी। मैं एक घर के नीचे ज़ोर ज़ोर स

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