जा पहले नाक पोछ के आ..



 हाह... :)

कैसे कैसे होते हैं ना सपने...

कोई कहता हमारे सपने हमारी इच्छायें हैं.. हमारा डर है...


मैं एक क्लास रूम में हूँ, या शायद वो मेरा ऑफिस है, कई सारी लड़कियां, और मैं एकदम अलग थलग बैठी हूँ. कोई ग्रुप है जो परफॉर्म कर रहा है.. कोई गा रहा है कोई एक्टिंग कर रहा.. सारी लड़कियोन ने एक लड़की या शायद टीचर है वो, को घेर रखा है शायद वो organize कर रही है.. मैं लड़कियों से पूछती हूँ क्या कोई शो हो रहा है, थिएटर ग्रुप है क्या है??

वे मुझे अनसुना कर देती हैं, अपनी बातो में लग जाती हैं.. मैं उन मैडम से कहती हूँ मुझे भी परफॉर्म करना है.. वो भी मुझे नहीं सुनती.. मैं तीन चार बार कहती हूँ.. Mam मुझे भी पार्टिसिपेट करना है.. मैं कर सकती हूँ क्या?

वो थोड़ी इर्रिटेट होके पलटती है और अपने हाथ के टीशु पेपर से मेरी नाक पोछ के कहती है क्यों नहीं सरस्वती तो सबके लिए है..


लड़कियां हँसने लग जाती हैं..मैं अचकचा जाती हूँ शर्मिंदा हो जाती हूँ .. फिर अलग हटके अपनी कविता पे परफॉर्म करने लगती हूँ अकेले.. शायद ख्यालों में..


मैम ने मेरी नाक क्यों पोछी सबके सामने..

जाने कैसे मुझे ये याद है क्यूंकि तब तो मैं बहुत छोटी थी ज़ब हमारे बगल वाले घर के आँगन में जन्माष्टमी झांकी सजती थी. जिसमे दो बच्चों को राधा कृष्ण bana के बिठाते थे. मैंने कहा मामा मुझे भी कृष्ण बनना है तो उन्होंने जवाब दिया जा पहले नाक पोछ के आ..

जाने क्यों ये बात आज तक याद है... क्यों याद है... वो झिझक वो शर्मिंदगी..

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