एक रत एक चाँद एक मैं

 


रात थी... गहरी सी..

नींद बस पलकों पर ही थी..सांसें अपनी रिदम से चल रही थी...के अचानक ज़ोर की आवाज़ आई भाड़...जैसे किसी ने घबरा के दरवाज़ा पीटा हो...
नींद ने चौंक के जल्दी से अपना लिहाफ औढ़ाऔर बिना कुछ कहे अँधेरों में गायब हो गई..
आवाज़ें और तेज़ और तेज़ हो गई थीं... जैसे बिजली गिरी हो कहीं... अचानक पानी का रोशन सा रेला मेरे कमरे में दाखिल  हो गया... मैंने दरवाजा खोला देखा देहलीज पर भीगा हुआ सा चांद खड़ा ठिठुर रहा था.. पहचानती थी मैं उसे.. कई बार अपनी खिड़की से उसे  देखा था... शांत... चुप सा.. यहां वहां भटकता सा...
मैने एहतियात से आस पास देखा और धीरे से उसे कहा आजाओ..
कितना ख़ूबसूरत था चाँद कितना...
ऐसी तेज बारिशों में कहां भटकते रहते हो.. मैंने उसे तौलिया देते हुए कहा... कम से कम एक बरसाती ही ले लिया करो... 
और कहां थे इतने दिन से...
वो मुस्कुरा दिया.. कहीं नहीं एक पेड़ पर एक घोंसले में रह रहा था
अबके मुस्कुराने की बारी मेरी थी..
अच्छा चाय पियोगे...रुको बनाती हूं...
वो कुछ कहने को हुआ फिर चुप हो गया..
यहां वहां देख रहा है.. तो यहां रहती हो तुम..?
अचानक मुझे अपने अस्त व्यस्त से कमरे का ख्याल आया..
हां...छोटा है ना बहुत..
मैंने उसे चाय देते हुए कहा.. पर काम चल जाता है..
हुं... उसने हुंकारा सा भरा 
तुम्हारा अच्छा है ना कोई लिमिट ही नहीं.. जहां देखो वहां तक ​​आसमान ही आसमां.. ना छत ना दीवारें... कोई रोकने वाला नहीं टोकने वाला नहीं... कभी किसी पेड़ पर अटक गए कभी बादलों पर सवार हो गए.. .
जब चाहे जहां चाहे भटकते रहो...

हां पर कभी-कभी छतों की दीवारों की बहुत ज़रूरत होती है..
कई बार लगता है दीवारों से पीठ टिकाए देर तक खड़ा रहूं... रुक जाऊं.. आंखें उठाऊं तो यकीन हो के मेरे सर पर भी कोई छत है... कोई तो खिड़की हो कोई तो दरवाजा हो जिसे इस दुनिया के मुंह पर बंद कर सकूँ ...कहते-कहते उसकी आवाज भर्रा सी  गई...
मैंने जरा हिचकते हुए उसके कंधे पर अपना हाथ रख दिया... उसने अपने ठंडे गाल मेरी उंगलियों से सटा दिए... मैं थोड़ी सिहर सी उठी.. अपना हाथ खींचते हुए बोली तो ठीक है ना,  चलो अपना अपना कमरा बदल लेते हैं.. रह लो दीवारों में ..
वो हंसा मैं तो रह लूंगा तुम रह पाओगी?
अनंतता भी किसी श्राप से कम नहीं..
अरे ऐसा क्या हो गया डायलॉग पे डायलॉग मारे जा रहे हो.. ऐसे तीखे-तीखे.. झगड़ा-वगाड़ा हो गया क्या किसी से..
वो फिर मुस्कुरा दिया..
हाय कितनी गहरी थी उसकी आंखें... अरे ये क्या..
क्या...
ये निशान कैसा...
अरे क क  कुछ नहीं.. कुछ नहीं वो खुद को छुडाते हुए बोला .. 
अरे कुछ कैसे नहीं...देखने दो...मैंने उसका चेहरा हाथ में ले लिया...आंखों के जरा सा नीचे ये... ऐएए ....क्या हुआ हां किसी ने मारा क्या तुम्हें... हाये मैंने अभी तक कैसे नहीं देखा..
वो मेरे सीने से लग गया...
क्या हुआ हान... क्या हुआ...

बिजली ने मेरे पेड़ को जला दिया.... मेरी चिड़िया.. उसके बच्चे... सब सब  जल गए...
हे  ईश्वर...हे  ईश्वर....
...चुप ... चुप ...
बहुत देर तक वो सिसकता रहा... मैं उसे  सहलाती रही...

चाँद .. ऐ चाँद ...
उउन्...
चाय और पियोगे...
ना ..
अरे थोड़ी सी..जरा सी...
मैं उठने को हुई
उसने मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया..
सुनो...
हाँ...
कभी-कभी.... यहां आ सकता हूं...
उसने अपनी बड़ी बड़ी भोली सी आँखों से मुझे देखते हुए कहा...

हां ना... क्यों नहीं... तुम्हारे आने से तो ये कमरा आसमान से भी सुंदर हो जाता है यार...
बस सूरज को मत बताना...जानते हो ना जलकुकड़ा है..
वो हंस दिया...
चलो एक-एक चाय और..
नहीं रहने दो सुबह हो जाएगी..
अरे ना ना.. एक एक बस... एक एक और
पर वो नहीं माना, जैसे ही जाने को हुआ... देखा नींद कान लगाए वहीं दरवाजे पर खड़ी थी...
वो मुस्कुरा रही है...चाँद उसे देख नज़र नीची किये तेज-तेज कदमों से चला गया...

आह्म्म .... मैं आजाऊं ...
मैंने गुस्से से उसे  देखा...
नहीं अब आके क्या करोगी... सुबह हो गई है...
अरे सुबह के ख्वाब सच्चे होते हैं मेरी जान... कहो तो चांद का सपना ले आऊं... उसने जोर-जोर से हंसते हुए कहा।
नहीं चाहिए .. निकलो निकलो यहां से .. मैंने उसे ढकेलते हुए दरवाजा बंद कर दिया...
कमीनी नींद...बड़ी आई झूठे सपनों को सच बताती है..हं...

छोड़ो अपन तो चाय पीते हैं...

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